Tuesday, November 3, 2020

जानें, श्रीकृष्ण ने क्यों सुनाई द्रोपदी को करवा चौथ मनाने की पौराणिक कथा?


    file photo source: social media

अति प्राचीन काल की बात है एक बार पांडु पुत्र अर्जुन तप करने के लिए नीलगिरी पर्वत पर चले गए तो पीछे से द्रोपदी को बडी चिंता होने लगी कि कहीं अर्जुन की तपस्या में कोई विघ्न न डाले, क्योंकि पाण्डवों के अनेक शत्रु थे इस प्रकार द्रोपदी ने शोक विव्हल हो श्री कृष्ण की आराधना की श्री कृष्ण उपस्थित हुए और पूछा कहो! क्या कष्ट है तुम्हें ?

द्रोपदी बोली - हे प्रभु! मुझे क्या कष्ट है यह तो आप स्वयं जानते हैं आप तो अन्तर्यामी हो, मुझे कष्टों के बोझ ने विव्हल कर दिया है, क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे इन कष्टो से छुटकारा मिल सके?

श्री कृष्ण मुस्करा कर बोले - हे सखी ! तुम्हारा प्रश्न अति उत्तम है यही प्रश्न एक बार पार्वती जी ने शिवजी से किया था तब शिवजी ने पार्वती जी को करवा चौथ व्रत का विधान बताया था तब द्रोपदी बोली -प्रभु करवा चौथ व्रत की जानकारी मुझे भी दीजिये और उसकी कथा कहिए।

तब श्री कृष्ण ने एक पल सोचने के बाद कहा - दुःख सुख जो सांसारिक माना जाता है प्राणी उसमें सदा ही लिप्त रहता है मैं तुम्हें अति उत्तम करवा चौथ की कथा सुनाता हॅूं इसे ध्यान से सुनो -

प्राचीन काल में गुणी, विद्वान धर्मपरायण वेद शर्मा नाम का एक ब्राहम्ण रहता था उसकी पत्नी का नाम लीलावती था उसके सात महारथी पुत्र तथा एक वीरवती नाम की पुत्री थी उसकी आंखें नीलकमल के समान और मुख चन्द्रमा के समान था विवाह योग्य होने पर वेद शर्मा ने एक विद्वान ब्राहम्ण सोमनाथ के साथ उसका विवाह कर दिया। एक बार पुत्री ने अपनी भोजाईयों सहित कार्तिक कृष्ण चतुर्थी का व्रत किया, सायंकाल स्नान कर सभी ने भक्तिभाव से पूरी पूजन सामगत्री से गौराजी का पूजन किया तथा अर्घ्य देने के लिए चन्द्रोदय की प्रतीक्षा करने लगी, किन्तु चन्द्रोदय से पूर्व ही वीरवती को भूख ने विवश कर दिया और वह बेहोश हो कर गिर गई , इससे उसके स्नेही भाई अत्यंत दुःखी हुए और उन्होंने छल से पीपल की आड में कृत्रिम चन्द्रमा बनाकर दिखा दिया, लडकी ने अर्घ्य दे भोजन कर लिया, भोजन करते ही उसके पति की हृदयगति बन्द हो गई, इससे दुःखी हो, उसने पुनः शिवजी का पूजन एक वर्ष तक निराहार रहकर किया तथा वर्ष के समाप्त होने पर करक चतुर्थी का व्रत किया तब ब्राम्हाणी वहां देव कन्याओं के साथ करक चतुर्थी का व्रत करने आई और स्वयं वीरवती के पास गई तब ब्राम्हाणी पुत्री ने उनसे अपने दुःख कार कारण पूछा, इन्द्राणी ने बताया - तुम्हें करवा चौथ व्रत में चौथ दर्शन से पूर्व भोजन कर लेने से यह कष्ट मिला है, तब उस लडकी ने अंजली बांधकर विनय की कि इससे मुक्त होने का काई उपाय बताईये।

इस पर इन्द्राणी ने कहा- अब तुम विधि पूर्वक इस करवा चौथ का व्रत करो तो तुम्हारे पति पुनर्जीवित हो जायेंगे, वीरवती ने ऐसा ही किया जिसके प्रभाव से उसका पति जीवित हो गया और वह अपने पति के साथ आनन्द पूर्वक रहने लगी। 

श्री कृष्ण ने कहा- हे द्रोपदी ! यदि तुम भी इस व्रत को करोगी तो तुम्हारे सभी संकट टल जायेंगे! 

श्री कृष्ण के इन वचनों को सुनकर द्रोपदी ने यह व्रत किया और पांडव सभी क्षेत्रों में विजयी हुए इस प्रकार सुख सौभाग्य,पुत्र पौत्रादि और धन धान्य की इच्छुक स्त्रियों को यह व्रत विधिपूर्वक करना चाहिए!

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