अटल के पदचिन्ह्नों पर मोदी
पहले अटल, अब मोदी की वजह से भाजपा को ना झेलना पड़ जाए वनवास
नई दिल्ली। गंगा पर बड़े-बड़े वादे पर उन पर अमल के नाम पर कुछ भी नहीं। शायद ये ही दर्द लेकर कलयुग के गंगापुत्र देवलोक को गमन कर गए। परंतु उन्होंने देवलोक गमन से पहले लिखे एक पत्र में प्रधानमंत्री से गंगा को बचाने के प्रयास करने का अनुरोध किया और साथ ही अंत में ऐसा न होने पर एवं अनशन के दौरान अपनी मृत्यु होने पर उन्हें पाप का भागीदारी बनने की चेतावनी भी दी।
संत सानंद की चेतावनी और उनके अचानक देह त्याग ने अटल बिहारी वाजपेयी और महंत परमहंस रामचंद्र दास के किस्से को साधु-संन्यासियों के बीच एक बार फिर चर्चा का विषय बना दिया है। राम जन्मभूमि आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले संत भी अपने अंत समय में राम मंदिर नहीं बन पाने से व्यथित थे। उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद तत्कालीन अटल सरकार रवैये ने उनकी व्यथा को और बड़ा दिया। वाजपेयी ने 11 मार्च 2002 को संसद को आशस्वत किया था कि विवादित भूमि पर केंद्र सरकार सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को मानेगी। विहिप ने विवादित भूमि पर शिलादान और सांकेतिक पूजा की घोषणा कर रखी थी।
कहा था, त्याग दूंगा प्राण
शंकराचार्य ने 26 जून 2002 को अटल से मुलाकात के बाद कहा था कि केंद्र सरकार ने इस मामले में कुछ नहीं किया। जिसके बाद परमहंस रामचंद्र दास ने कहा था कि मैं रामलला के दर्शन और पूजन के लिए अवश्य जाऊंगा, यदि मुझे रोका गया मैं प्राण त्याग दूंगा। उन्होंने कहा था कि उनका अदालत, राजनीति या संसद से कोई वास्ता नहीं है, वे प्रभु श्रीराम के अलावा किसी और को नहीं मानते। शिलादान कार्यक्रम की घोषणा के बाद केंद्र सरकार ने संत से सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की बाबत विवादित भूमि या इसके आसपास इसको आयोजित ना करने का अनुरोध किया था।
अंत समय तक मलाल
केंद्र सरकार के रवैये की वजह से रामजन्म भूमि पर तय समय और कार्यक्रम के अनुसार शिलादान और पूजन नहीं हो पाया। उल्टे परमहंस रामचंद्र दास और विहिप अध्यक्ष अशोक सिंहल के साथ पुलिस ने धक्कामुक्की की और देशभर से आए लाखों भक्तों पर लाठीचार्ज किया गया। केंद्र सरकार की ओर से बाद में अयोध्या प्रकोष्ठ के प्रभारी और आईएएस अधिकारी शत्रुघ्न सिंह ने शिला स्वीकार की। राम मंदिर के वादे को लेकर सत्ता में आई भाजपा सरकार के इस रवैये से संत परमहंस रामचंद्र दास अंत समय तक व्यथित रहे। वे अटल बिहारी वायजेपी के रुख से बेहद आहत थे और कहीं न कहीं इस मलाल को लेकर वे इस संसार से विदा हुए। इसके बाद अनुमानों के उल्ट 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा और वह 10 साल तक सत्ता से बाहर रही। अटल की सक्रियता धीरे-धीरे कम होने लगी और वे बीमार रहने लगे। वहीं, संत समाज का मानना है कि अटल को परमहंस रामचंद्र दास के मन से निकली आह लगी, जिससे वे सत्ता से बाहर हो गए और अंत समय में खाने-पीने से लेकर चलने फिरने तक के लिए उन्हें दूसरों पर निर्भर रहना पड़ा।
अटल को कहा था, आपकी स्थिति भी वैसी हो जाएगी
संतों के अनुसार इससे पहले भी गो रक्षा के मुद्दे पर जब संत समाज का प्रतिनिधिमंडल अटल बिहारी वाजपेयी से मिला था, तो इस सवाल पर अटल की चुप्पी परमहंस को चुभ गई थी। उन्होंने अटल से कहा था कि आप चुनाव से पहली की अपनी घोषणा पर कायम रहें, गो रक्षा के लिए आप अपनी सरकार गिरा दीजिए। जनता सब समझती है। आप पूर्ण बहुमत से सत्ता में आएंगे। हम यहां दूध फल ग्रहण करने नहीं आएं। उन्होंने कहा था कि अटल जी गो रक्षा पर आप यदि मौन है, कुछ बोल नहीं सकते। तो आप ना देख सकेंगे, ना बोल सकेंगे और ना समझ सकेंगे, इसी स्थिति में आपको जाना है तो यही स्थिति आपकी होगी, यह बोल कर संत निकल आए। संत समाज का मानना है यह भले ही श्राप न हो परंतु उनके दुखी मन से जो वेदना निकली वह सच हो गई।निधन से कुछ साल पहले ही अटल लगभग ऐसी स्थिति में आ गए थे।
इस वीडियो को देखें जो यूट्यूब पर है- क्या अटल जी को लगा था एक संत का श्राप?
अपने को दोरहा रहा है इतिहास
संत समाज के अनुसार आज एक बार फिर इतिहास अपने को दोहराता नजर आ रहा है। पहले अटल-परमहंस और अब मोदी-सानंद। परमहंस अपने मन में राममंदिर की पीड़ा, तो संत सानंद गंगा मैया की उपेक्षा का दंश लेकर इस संसार से गमन कर गए। चुनाव में गंगा मैया की रक्षा करने का वादा करने वाले मोदी से उन्हें बहुत उम्मीदें थी, परंतु ये उम्मीद भी दिन-प्रतिदिन टूटती ही गई। जो कि अंत समय तक उनके मन में रही। उनका मानना है कि कहीं अगले साल होने लोकसभा चुनाव में संत सानंद का यह श्राप मोदी सरकार पर भारी न पड़ जाए और भाजपा एक बार फिर 2004 की तरह सत्ता से बाहर न हो जाए।
चांडाल चौकड़ी से घिरे गए हैं प्रधानमंत्री
अनशन पर बैठने से पहले गंगा के लिए बलिदान देने वाले संत सानंद ने इस पत्र में मोदी पर चांडाल चौकड़ी के प्रभाव में गंगा मैया को भूलने का आरोप लगाया। उन्होंने इस साल 22 फरवरी को प्रधानमंत्री को भेजे पत्र में लिखा था कि प्रिय छोटे भाई मोदी आपके इर्दगिर्द एक ऐसी चांडाल चौकड़ी है, जो केवल सत्ता सुख भोगने के लिए गंगा मैया के नाम का प्रयोग कर रही है और जमीनी हकीकत में मां को बचाने के लिए कुछ नहीं कर रही है। आप मां और प्रभु राम के आशीर्वाद से 2014 में लोकसभा चुनाव जीतकर देश की सत्ता पर आरुढ़ हुए। परंतु आप उनको भूल गए। विकास के नाम पर मां का दोहन जारी है। मां के लहू की अंतिम बूंद भी आप पी लेना चाहते हो। आपने लोक लुभावनी चालाकियों के बल पर सत्ता हासिल की। भले ही आप सत्ता पर काबिज हैं, परंतु मेरा जो हक है उसके आधार पर मैं तीन तुमसे तीन उपेक्षाएं रखता हूं।
प्रभु श्रीराम दे मेरी हत्या का दंड
गुरुवार को गंगा पर कुर्बान होने वाले स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद उर्फ मशहूर पर्यारणविद् प्रो जीडी अग्रवाल ने पत्र के अंत में लिखा कि मैया की इस तरह की उपेक्षा से उनको मिलती अहसय यातना से मेरा जीवन भी यातना मय हो गया है। यदि मेरी तीनों उपेक्षाएं पूरी नहीं होती तो मैं 22 जून को गंगा दशहरा पर आमरण उपवास पर बैठ जाऊंगा और भगवान राम से गंगा मैया का अहित करने और मेरी हत्या करने के अपराध पर तुम्हें (मोदी) को समुचित दंड देने की प्रार्थना करता हुआ प्राण त्याग दूंगा।
आप भी पढ़े संत सानंद का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखा मार्मिंक पत्र। इस पत्र को संत सानंद के देह त्याग वाले दिन praharlive.com (https://praharlive.com/pm-modi-ko-diya-shrap/) ने जारी किया था।
पहले अटल, अब मोदी की वजह से भाजपा को ना झेलना पड़ जाए वनवास
नई दिल्ली। गंगा पर बड़े-बड़े वादे पर उन पर अमल के नाम पर कुछ भी नहीं। शायद ये ही दर्द लेकर कलयुग के गंगापुत्र देवलोक को गमन कर गए। परंतु उन्होंने देवलोक गमन से पहले लिखे एक पत्र में प्रधानमंत्री से गंगा को बचाने के प्रयास करने का अनुरोध किया और साथ ही अंत में ऐसा न होने पर एवं अनशन के दौरान अपनी मृत्यु होने पर उन्हें पाप का भागीदारी बनने की चेतावनी भी दी।
संत सानंद की चेतावनी और उनके अचानक देह त्याग ने अटल बिहारी वाजपेयी और महंत परमहंस रामचंद्र दास के किस्से को साधु-संन्यासियों के बीच एक बार फिर चर्चा का विषय बना दिया है। राम जन्मभूमि आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले संत भी अपने अंत समय में राम मंदिर नहीं बन पाने से व्यथित थे। उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद तत्कालीन अटल सरकार रवैये ने उनकी व्यथा को और बड़ा दिया। वाजपेयी ने 11 मार्च 2002 को संसद को आशस्वत किया था कि विवादित भूमि पर केंद्र सरकार सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को मानेगी। विहिप ने विवादित भूमि पर शिलादान और सांकेतिक पूजा की घोषणा कर रखी थी।
कहा था, त्याग दूंगा प्राण
शंकराचार्य ने 26 जून 2002 को अटल से मुलाकात के बाद कहा था कि केंद्र सरकार ने इस मामले में कुछ नहीं किया। जिसके बाद परमहंस रामचंद्र दास ने कहा था कि मैं रामलला के दर्शन और पूजन के लिए अवश्य जाऊंगा, यदि मुझे रोका गया मैं प्राण त्याग दूंगा। उन्होंने कहा था कि उनका अदालत, राजनीति या संसद से कोई वास्ता नहीं है, वे प्रभु श्रीराम के अलावा किसी और को नहीं मानते। शिलादान कार्यक्रम की घोषणा के बाद केंद्र सरकार ने संत से सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की बाबत विवादित भूमि या इसके आसपास इसको आयोजित ना करने का अनुरोध किया था।
अंत समय तक मलाल
केंद्र सरकार के रवैये की वजह से रामजन्म भूमि पर तय समय और कार्यक्रम के अनुसार शिलादान और पूजन नहीं हो पाया। उल्टे परमहंस रामचंद्र दास और विहिप अध्यक्ष अशोक सिंहल के साथ पुलिस ने धक्कामुक्की की और देशभर से आए लाखों भक्तों पर लाठीचार्ज किया गया। केंद्र सरकार की ओर से बाद में अयोध्या प्रकोष्ठ के प्रभारी और आईएएस अधिकारी शत्रुघ्न सिंह ने शिला स्वीकार की। राम मंदिर के वादे को लेकर सत्ता में आई भाजपा सरकार के इस रवैये से संत परमहंस रामचंद्र दास अंत समय तक व्यथित रहे। वे अटल बिहारी वायजेपी के रुख से बेहद आहत थे और कहीं न कहीं इस मलाल को लेकर वे इस संसार से विदा हुए। इसके बाद अनुमानों के उल्ट 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा और वह 10 साल तक सत्ता से बाहर रही। अटल की सक्रियता धीरे-धीरे कम होने लगी और वे बीमार रहने लगे। वहीं, संत समाज का मानना है कि अटल को परमहंस रामचंद्र दास के मन से निकली आह लगी, जिससे वे सत्ता से बाहर हो गए और अंत समय में खाने-पीने से लेकर चलने फिरने तक के लिए उन्हें दूसरों पर निर्भर रहना पड़ा।
अटल को कहा था, आपकी स्थिति भी वैसी हो जाएगी
संतों के अनुसार इससे पहले भी गो रक्षा के मुद्दे पर जब संत समाज का प्रतिनिधिमंडल अटल बिहारी वाजपेयी से मिला था, तो इस सवाल पर अटल की चुप्पी परमहंस को चुभ गई थी। उन्होंने अटल से कहा था कि आप चुनाव से पहली की अपनी घोषणा पर कायम रहें, गो रक्षा के लिए आप अपनी सरकार गिरा दीजिए। जनता सब समझती है। आप पूर्ण बहुमत से सत्ता में आएंगे। हम यहां दूध फल ग्रहण करने नहीं आएं। उन्होंने कहा था कि अटल जी गो रक्षा पर आप यदि मौन है, कुछ बोल नहीं सकते। तो आप ना देख सकेंगे, ना बोल सकेंगे और ना समझ सकेंगे, इसी स्थिति में आपको जाना है तो यही स्थिति आपकी होगी, यह बोल कर संत निकल आए। संत समाज का मानना है यह भले ही श्राप न हो परंतु उनके दुखी मन से जो वेदना निकली वह सच हो गई।निधन से कुछ साल पहले ही अटल लगभग ऐसी स्थिति में आ गए थे।
इस वीडियो को देखें जो यूट्यूब पर है- क्या अटल जी को लगा था एक संत का श्राप?
अपने को दोरहा रहा है इतिहास
संत समाज के अनुसार आज एक बार फिर इतिहास अपने को दोहराता नजर आ रहा है। पहले अटल-परमहंस और अब मोदी-सानंद। परमहंस अपने मन में राममंदिर की पीड़ा, तो संत सानंद गंगा मैया की उपेक्षा का दंश लेकर इस संसार से गमन कर गए। चुनाव में गंगा मैया की रक्षा करने का वादा करने वाले मोदी से उन्हें बहुत उम्मीदें थी, परंतु ये उम्मीद भी दिन-प्रतिदिन टूटती ही गई। जो कि अंत समय तक उनके मन में रही। उनका मानना है कि कहीं अगले साल होने लोकसभा चुनाव में संत सानंद का यह श्राप मोदी सरकार पर भारी न पड़ जाए और भाजपा एक बार फिर 2004 की तरह सत्ता से बाहर न हो जाए।
चांडाल चौकड़ी से घिरे गए हैं प्रधानमंत्री
अनशन पर बैठने से पहले गंगा के लिए बलिदान देने वाले संत सानंद ने इस पत्र में मोदी पर चांडाल चौकड़ी के प्रभाव में गंगा मैया को भूलने का आरोप लगाया। उन्होंने इस साल 22 फरवरी को प्रधानमंत्री को भेजे पत्र में लिखा था कि प्रिय छोटे भाई मोदी आपके इर्दगिर्द एक ऐसी चांडाल चौकड़ी है, जो केवल सत्ता सुख भोगने के लिए गंगा मैया के नाम का प्रयोग कर रही है और जमीनी हकीकत में मां को बचाने के लिए कुछ नहीं कर रही है। आप मां और प्रभु राम के आशीर्वाद से 2014 में लोकसभा चुनाव जीतकर देश की सत्ता पर आरुढ़ हुए। परंतु आप उनको भूल गए। विकास के नाम पर मां का दोहन जारी है। मां के लहू की अंतिम बूंद भी आप पी लेना चाहते हो। आपने लोक लुभावनी चालाकियों के बल पर सत्ता हासिल की। भले ही आप सत्ता पर काबिज हैं, परंतु मेरा जो हक है उसके आधार पर मैं तीन तुमसे तीन उपेक्षाएं रखता हूं।
प्रभु श्रीराम दे मेरी हत्या का दंड
गुरुवार को गंगा पर कुर्बान होने वाले स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद उर्फ मशहूर पर्यारणविद् प्रो जीडी अग्रवाल ने पत्र के अंत में लिखा कि मैया की इस तरह की उपेक्षा से उनको मिलती अहसय यातना से मेरा जीवन भी यातना मय हो गया है। यदि मेरी तीनों उपेक्षाएं पूरी नहीं होती तो मैं 22 जून को गंगा दशहरा पर आमरण उपवास पर बैठ जाऊंगा और भगवान राम से गंगा मैया का अहित करने और मेरी हत्या करने के अपराध पर तुम्हें (मोदी) को समुचित दंड देने की प्रार्थना करता हुआ प्राण त्याग दूंगा।
आप भी पढ़े संत सानंद का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखा मार्मिंक पत्र। इस पत्र को संत सानंद के देह त्याग वाले दिन praharlive.com (https://praharlive.com/pm-modi-ko-diya-shrap/) ने जारी किया था।
(उपरोक्त लेख संत समाज की धार्मिक धारणा पर आधारित है, जबकि विज्ञान इसको नहीं मानता है। ये पढ़ने वाले पाठक पर निर्भर है कि वह इस लेख को किस रूप में लेता है। यदि इस लेख से किसी की भावना को ठेस पहुंचती है, तो इसके लिए माफी चाहते हैं।)
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