Friday, October 17, 2008

एक साथ जन्मी तीन टेस्ट ट्यूब बेबी


नई दिल्ली। गुड़गांव निवासी अनिल राणा [परिवर्तित नाम] तीन बेटियां पाकर बहुत खुश हैं। हो भी क्यों नहीं शादी के छह वर्ष बाद उन्हें एक साथ तीन बच्चियों का संतान सुख मिला। वे संतान प्राप्ति के लिए इनफर्टिलिटी ट्रीटमेंट भी करा चुके थे, लेकिन संतान-सुख नसीब नहीं हुआ। आखिरकार उनकी आस पंजाबी बाग के महाराजा अस्पताल में पूरी हुई। जहां 29 सितंबर को उनकी पत्नी पल्लवी [परिवर्तित नाम] ने विट्रो फर्टिलाइजेशन फैसिलिटी तकनीक से एक साथ तीन बच्चों को जन्म दिया।

डा. पायल सहगल व डा. एके जैन एंब्रियोलॉजिस्ट की देखरेख में पति के शुक्राणु व पत्नी के अंडाणु को खास तापमान व वातावरण में टेस्ट ट्यूब में रखकर फर्टिलाइज कराया जाता है। इस फर्टिलाइजेशन के बाद बने भ्रूण को पत्नी के गर्भाशय में डाल दिया जाता है। इसके बाद भ्रूण की सामान्य वृद्धि होने लगती है। उन्होंने बताया कि इस तकनीक को विट्रो फर्टिलाइजेशन फैसिलिटी [आईवीएफ] कहा जाता है।

डा. गुप्ता के मुताबिक यह तकनीक नि:संतान दंपतियों के लिए वरदान साबित हो रही है। इस तकनीक से बच्चा पाने में फ्भ् हजार रुपये खर्च आता है। अस्पताल के मुख्य संरक्षक नंद किशोर गर्ग के मुताबिक गरीब नि:संतान दंपति को यह सुविधा नि:शुल्क उपलब्ध कराई जाएगी।

[साभार दैनिक जागरण]

Thursday, October 16, 2008

राष्ट्रीय संयोजक बने डॉ. राजेश


नई दिल्ली। भारतीय जनता युवा मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य डॉ. राजेश शर्मा को भाजयुमो के प्रकाशन विभाग का राष्ट्रीय संयोजक बनाया गया है।

अपनी नियुक्ति के लिए डा. शर्मा ने लालकृष्ण आडवाणी, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह, वरिष्ठ भाजपा नेत्री सुषमा स्वराज, हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और मोर्चे के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित ठाकुर का आभार जताया है।

हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर से मोर्चे की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल डा.शर्मा ने कहा है कि संगठन की मजबूती के लिए वह जी-जान से जुटे रहेंगे। जिससे आगामी लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों में पार्टी की जीत सुनिश्चित हो सके।

Friday, October 10, 2008

मरता समाज

समय: दोपहर 12 बजे

दिन: शुक्रवार, 10 अक्‍टूबर, 2008

स्थान: लालबत्ती, समाचार अपार्टमेंट, मयूर विहार-फेस 1, दिल्ली

दृश्य: फुटपाथ पर खड़ी एक अर्धनग्न सांवली सलोनी युवती... कुर्ते से अपने तन को ढकने का प्रयास करती हुई। चेहरे पर बेबसी का आलम, पास से गुजरते वाहन और हल्की-फुल्की टिप्पणियां...

वह दृश्य देख में कुछ विचलित-सा हुआ। मन में एकबारगी सोचा क्यों न इसे एक सलवार लाकर दे दूं। फिर दूसरा विचार उठा... चलो छोड़ो आफिस को पहले ही लेट हो चुके हो और फिर सलवार खरीदने पर पैसे खर्च होंगे सो अलग... फिर मोटरसाइकिल को अंदर की ओर मोड़ दिया। परंतु नजरों के सामने बार-बार उसी युवती का दृश्य घूमने लगा। तभी मार्केट के सामने मोड़ पर मुझे कुछ बैनर गिरे हुए दिखे। मन में कुछ सोचा... कुछ ठिठका.. सोचा समाज क्या कहेगा, फिर मन की उलझन व शर्म को एकतरफ रख मोटरसाइकिल रोकी... मोटरसाइकिल से उतरा... इधर-उधर देखा फिर बैनर उठा चुपचाप मोटरसाइकिल उठाई और वापस नोएडा-अक्षरधाम रोड़ की तरफ मुड़ गया। उस युवती के पास पहुंचा तो देखा... वह फुटपाथ पर बैठकर कक्कड़-पत्थर उठाकर सड़क पर फेंक रही है... मैंने चुपचाप कपड़े के बैनर उस युवती के पास फेंके और वापस मोटरसाइकिल घूमाई... देखा युवती ने बैनर उठाकर अपने सिर के ऊपर चुन्नी की तरह रखा हुआ था और सड़क को छोड़ अपने ऊपर कक्कड़-पत्थर डाल रही थी। मन में उसकी स्थिति को लेकर एक टीस लिए मैं अपने आफिस की तरफ बढ़ गया... फिर भी मन था बार-बार उसकी दुर्दशा की तरफ जा रहा था.. मन में बार-बार ये विचार उठ रहे थे... क्या मैंने उसकी आधी-अधूरी मदद करके ठीक किया। ...आज तो वह जैसे-तैसे अपना तन ढक रही है... कल क्या होगा, जब ये कपड़े भी नहीं रहेंगे... क्या उस जैसे लोगों को कपड़े देने या साफ कहें तो कपड़े का बैनर पकड़ा देना समस्या का हल होगा... नहीं! क्या ऐसे लोगों के लिए स्थायी निवास, सुरक्षा व इलाज की जरूरत नहीं है... क्या आज हम लोग इतने स्वार्थी हो गए हैं कि ऐसे लोगों की मदद के लिए कुछ भी नहीं कर सकते... क्या आज मुझमें और एक जानवर में कोई अंतर नहीं रह गया, जो केवल अपने बारे में ही सोचता है... और ऐसे ढेर सारे प्रश्न लेकर मैं अपने आफिस पहुंच गया और थोड़ी देर में ही काम में इतना व्यस्त हो गया कि सबकुछ भूल बैठा.. आज खुद मैं और वह सब लोग मुझे संवदेनहीन नजर आए जो उस युवती की दुर्दशा देख उसे भगवान भरोसे छोड़ आगे बढ़ गए। क्या यही समाज रह गया है हमारा... मुझे कोफ्त हो रही है इस समाज पर अपने आप पर।

राजेश