भारत को यह दुनिया एक हिंदू देश मानती है। किंतु दुर्भाग्य से भारत के ही अधिकांश प्रबुद्ध इस संज्ञा से शून्य हैं। वे अपने-आपको 'सेक्यूलर', 'प्रगतिशील', 'समाजवादी', 'विकासशील' आदि पता नहीं, क्या-क्या कहते रहते हैं, लेकिन 'हिंदू' कहने से बचते हैं। हमारे बौद्धिक जीवन में यह आत्मप्रवंचना, हिंदू शब्द को हीनता का प्रतीक मानना हमारी अनेक आंतरिक और वैदेशिक समस्याओं के समाधान में एक बड़ी बाधा है। नरेंद्र मोदी को फिर एक बार अमेरिका द्वारा वीजा न देने की घोषणा से वही सच्चाई सामने आई है। गौरतलब है कि दूसरे की धार्मिक स्वतंत्रता अथवा मानवाधिकार हनन के आरोपी किसी विदेशी को वीजा न देने का अमेरिकी कानून आज तक किसी ईसाई या मुसलिम विदेशी शासकों पर लागू नहीं हुआ। इसके लिए एक हिंदू को चुना गया है। नरेंद्र मोदी ने किसी की धार्मिक स्वतंत्रता का कैसे हनन किया या गुजरात में कौन-सा मानवाधिकार बाधित है, इसका अमेरिकियों के पास कोई उत्तर नहीं है। सऊदी अरब में कोई हिंदू अपने देवी-देवता की मूर्ति तक नहीं ले जा सकता। वह अपने त्योहार तक सार्वजनिक नहीं मना सकता। कई इसलामी देशों में विदेशी गैर-मुसलिम महिलाओं पर इसलामी कानून जबरन लागू किए जाते हैं। यह सब दूसरों की धार्मिक स्वतंत्रता का खुलेआम हनन होते हुए भी अमेरिका अरब शासकों को अपमानित नहीं करता। पर नरेंद्र मोदी पर यही आरोप लगाकर उन्हें अपमानित किया गया। क्यों? इसका ईमानदारी से सामना करना जरूरी
है।अमेरिकी विदेश मंत्री कोंडोलीजा राइस ने स्पष्ट कहा है कि कुख्यात आतंकी गिरोह हिजबुल्ला को लेबनान में सरकारी भागीदारी दी जा सकती है। कुछ ही पहले उग्रवादी आयरिश संगठन सीन फेन के नेता गैरी एडम्स का अमेरिका में स्वागत हुआ। चीन में निहत्थे छात्रों पर टैंक चढ़ा देने वाले तथा तिब्बत में असंख्य बौद्ध मठों का विनाश करने वाले कम्युनिस्ट तानाशाह वाशिंगटन में परम सम्मानित अतिथि होते हैं। कश्मीर में हिंदुओं को निशाना बनाने वाले कई आतंकी-अलगाववादी मुसलिम नेता बार-बार अमेरिका जाते हैं। दो दशक तक अरब और यूरोप में आतंकी कार्रवाइयों के सरगना यासिर अराफात को सादर अमेरिका बुलाकर अनेक वार्ताएं की गई।हमारे साथ समस्या यह है कि भारतीय हिंदू दुनिया को बताने में विफल रहते हैं कि कंधमाल या गोधरा में कभी-कभार हिंदू समुदाय हिंसा पर उतारू होता है, तो वह लंबे समय तक हिंसा झेलने के बाद भड़कने वाली आकस्मिक प्रतिक्रिया होती है। इसी तरह वे ईसाई मिशनरियों द्वारा धर्मातरण में लिप्त होने की सच्चाई भी दुनिया को नहीं बताते। स्थिति इस प्रकार है, दुनिया में ईसाई सभ्यता है, उसके साम्राज्यवादी अधिकार हैं। छल-प्रपंच और हिंसा समेत हर तरह से गैर-ईसाइयों का धर्मातरण करवाने वाले संगठनों को अमेरिका और यूरोप की असंख्य सरकारों का संरक्षण हासिल है। इसी तरह इसलामी सभ्यता है, उसके और भी विशिष्ट अधिकार हैं। बात-बात में उसकी भावना आहत हो जाती है। किंतु मान लिया गया है कि हिंदू सभ्यता के न कोई अधिकार हैं, न भावना। नरेंद्र मोदी को मौके-बेमौके अपमानित करना यही चेतावनी देने का प्रयास है कि हिंदू भावनाओं की अभिव्यक्ति हर हाल में मना है। अन्यथा जो अमेरिका वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकी हमले के बाद सजा देने के लिए पूरे अफगानिस्तान पर आक्रमण अपना सहज अधिकार समझता है, वही अमेरिका मुंबई, गोधरा या कंधमाल में आतंकी कांड के बाद हिंदू प्रतिक्रिया को उसी दृष्टि से देखने से इनकार क्यों करता है? भारतीय हिंदुओं ने यह हीन स्थिति स्वीकार कर ली है? यह हीन-भावना हिंदू नेताओं, बुद्धिजीवियों में इतनी गहरी बैठी है कि हरेक संकट में वे इसलामी, ईसाई या मार्क्सवादी 'सहमतों' के विरुद्ध एकजुट होने के बदले अपने ही हिंदू बंधु से खफा हो जाते हैं, जिसने कुछ सच बोल दिया हो। यह संयोग था कि गोधरा के बाद नरेंद्र मोदी ने ऐसा रुख अपनाया, जो मूक हिंदुओं की पीड़ा और आक्रोश को व्यक्त करता था। मोदी की मुद्रा से हिंदू-विरोधी शक्तियों को भय हुआ कि यदि और भी हिंदू वैसा ही निर्भीक सत्य कहने लगें, तो क्या होगा? इसी चिंता से मोदी के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मोरचे बंदी कसी गई। हमें अमेरिका से नाराज होने की आवश्यकता नहीं। वह अपने कथित राष्ट्रीय हित में जो ठीक समझता है, करता है। मोदी को अपमानित करने के पीछे दुनिया के जेहादियों को अमेरिका के प्रति नरम बनाने की कूटनीति हो सकती है। किंतु वास्तविक दोषी स्वयं हिंदू समाज है, जो यह भूल गया है कि जो समाज अपनी रक्षा करने में समर्थ नहीं, उसके सद्भाव, मैत्री या नाराजगी का विशेष मूल्य नहीं होता। कुछ भाजपाइयों को भ्रम है कि मोदी के कारण देश की छवि बिगड़ी। वे भूलते हैं कि गोधरा से पहले भी दुनिया भर के वैचारिक आक्रमणकारियों ने भाजपा की यही छवि बना रखी थी। यदि हम हिंदू होकर भी दुनिया के सामने खुलकर हिंदुओं की चिंता रखने से बचते हैं, तो हमारी भीरुता स्पष्ट है। अमेरिका अरब तानाशाहों, ईरान या चीन को नहीं धकिया सकता। पर सबसे बड़े लोकतंत्र को अपमानित करने में उसे दो बार भी नहीं सोचना पड़ता। हिंदुओं की यही कमजोरी है कि उनकी कोई आवाज नहीं। नरेंद्र मोदी ने जैसे-तैसे यह आवाज उठाई। उन्हें इसी की सजा दी जा रही है।
शंकर शरण [लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं]
[साभार उमर उजाला]
Thursday, September 18, 2008
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