Thursday, October 14, 2010

समस्त साधनाओं को सिद्ध करने वाली मां सिद्धिदात्री


नवरात्र के नवम् तथा अंतिम दिन समस्त साधनाओं को सिद्ध एवं पूर्ण करने वाली तथा अष्टसिद्धि नौ निधियों को प्रदान करने वाली भगवती दुर्गा के नवम् रूप मां सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना का विधान है। देवी भगवती के अनुसार भगवान शिव ने मां की इसी शक्ति की उपासना करके सिद्धियां प्राप्त की थीं। इसके प्रभाव से भगवान का आधा शरीर स्त्री का हो गया था। उसी समय से भगवान शिव को अ‌र्द्धनारीश्वर कहा जाने लगा है। इस रूप की साधना करके साधक गण अपनी साधना सफल करते हैं तथा सभी मनोरथ पूर्ण करते हैं। वैदिक पौराणिक तथा तांत्रिक किसी भी प्रकार की साधना में सफलता प्राप्त करने के पहले मां सिद्धिदात्री की उपासना अनिवार्य है।

साधना विधान -
सर्वप्रथम लकडी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर मां सिद्धिदात्री की मूर्ति अथवा तस्वीर को स्थापित करें तथा सिद्धिदात्री यंत्र को भी चौकी पर स्थापित करें। तदुपरांत हाथ में लालपुष्प लेकर मां का ध्यान करें।


ध्यान मंत्र -
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।
ध्यान के बाद हाथ के पुष्प को मां के चरणों में छोड दें तथा मां का एवं सिद्धिदात्री के मंत्र का पंचोपचार अथवा षोडशोपचार विधि से पूजन करें। देशी घी से बने नैवेद्य का भोग लगाएं तथा मां के नवार्ण मंत्र का इक्कीस हजार की संख्या में जाप करें। मंत्र के पूर्ण होने के बाद हवन करें तथा पूर्णाहुति करें। अंत में ब्राह्मणों को भोजन कराएं तथा वस्त्र-आभूषण के साथ दक्षिणा देकर परिवार सहित आशीर्वाद प्राप्त करें। कुंवारी कन्याओं का पूजन करें और भोजन कराएं। वस्त्र पहनाएं वस्त्रों में लाल चुनरी अवश्य होनी चाहिए, क्योंकि मां को लाल चुनरी अधिक प्रिय है। कुंआरी कन्याओं को मां का स्वरूप माना गया है। इसलिए कन्याओं का पूजन अति महत्वपूर्ण एवं अनिवार्य है।

भोग
इस दिन भगवती को धान का लावा अर्पण करके ब्राह्मण को दे देना चाहिए। इस दान के प्रभाव से पुरुष इस लोक और परलोक में भी सुखी रह सकता है।
[श्री सिद्ध शक्तिपीठ शनिधाम के पीठाधीश्वर श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर परमहंस दाती महाराज]
http://www.shanidham.in/

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