Monday, October 11, 2010

मां स्कंदमाता की उपासना



नवरात्र के पुण्य पर्व पर पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा, अर्चना एवं साधना का विधान वर्णित है। मां के पांचवें स्वरूप को स्कंद माता के नाम से जाना जाता है। पांचवें दिन की पूजा साधना में साधक अपने मन-मस्तिष्क क ो विशुद्ध चक्र में स्थित करते हैं। स्कंद माता स्वरूपिणी भगवती की चार भुजाएं हैं। सिंहारूढा मां पूर्णत: शुभ हैं। साधक मां की आराधना में निरत रहकर निर्मल चैतन्य रूप की ओर अग्रसर होता है। उसका मन भौतिक काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद (अहंकार) से मुक्ति प्राप्त करता है तथा पद्मासना मां के श्री चरण कमलों में समाहित हो जाता है। मां की उपासना से मन की सारी कुण्ठा जीवन-कलह और द्वेष भाव समाप्त हो जाता है। मृत्यु लोक में ही स्वर्ग की भांति परम शांति एवं सुख का अनुभव प्राप्त होता है। साधना के पूर्ण होने पर मोक्ष का मार्ग स्वत: ही खुल जाता है।

  मां की उपासना के साथ ही भगवान स्कंद की उपासना स्वयं ही पूर्ण हो जाती है। क्योंकि भगवान बालस्वरूप में सदा ही अपनी मां की गोद में विराजमान रहते हैं। भवसागर के दु:खों से छुटकारा पाने के लिए इससे दूसरा सुलभ साधन कोई नहीं है।
 
  नवरात्र का पांचवां दिन भगवती स्कन्दमाता की आराधना का दिन है। श्रद्धालु भक्त व साधक अनेक प्रकार से भगवती की अनुकंपा प्राप्त करने के लिए व्रत-अनुष्ठान व साधना करते हैं। कुंडलिनी जागरण के साधक इस दिन विशुद्ध चक्र को जाग्रत करने की साधना करते हैं। वे गुरु कृपा से प्राप्त ज्ञान विधि का प्रयोग कर कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत कर शास्त्रोक्त फल प्राप्त कर अपने जीवन को सफल बनाना चाहते हैं। जगदम्बा भगवती के उपासक श्रद्धा भाव से उनके स्कंदमाता स्वरूप की पूजा कर उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को कृतार्थ करते हैं।
  विशुद्ध चक्र पर शनि ग्रह का आधिपत्य होता है। इसका लोक - जन लोक, मातृ देवी - कौमारी, देवता - सदाशिव (व्योमनेश्वर और व्योमनेश्वरी), तन्मात्रा - ध्वनि, तत्व - आकाश, इसका स्थान कण्ठ में होता है और अधिष्ठात्री देवी - शाकिनी/गौरी (वाणी) है। प्रभाव - यह वाणी का क्षेत्र है इसलिए यहाँ सबसे ज्यादा ऊर्जा की क्षति होती है।
 
     साधना विधान -
 सर्वप्रथम मां स्कंद माता की मूर्ति अथवा तस्वीर को लकडी की चौकी पर पीले वस्त्र को बिछाकर उस पर कुंकुंम से ॐ लिखकर स्थापित करें। मनोकामना की पूर्णता के लिए चौकी पर मनोकामना गुटिका रखें। हाथ में पीले पुष्प लेकर मां स्कंद माता के दिव्य ज्योति स्वरूप का ध्यान करें।
 
 
   ध्यान मंत्र -
 
   सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रित करद्वया।
   शुभदास्तु सदा देवी स्कंद माता यशस्विनी॥
 
      ध्यान के बाद हाथ के पुष्प चौकी पर छोड दें। तदुपरांत यंत्र तथा मनोकामना गुटिका सहित मां का पंचोपचार विधि द्वारा पूजन करें। पीले नैवेद्य का भोग लगाएं तथा पीले फल चढाएं। इसके बाद मां के श्री चरणों में प्रार्थना कर आरती पुष्पांजलि समर्पित करें तथा भजन कीर्तन करें।
 
    ग्रह कलह निवारण प्रयोग
   यदि आपके परिवार में बिना किसी कारण ही अशांति बनी रहती है। पारिवारिक सदस्य यदि एक साथ बैठ नहीं पाते। किसी न किसी बात को लेकर गृह कलह होता रहता है तो आज के दिन किसी भी समय सुबह, दोपहर शाम यह उपाय शुरू करें। लकडी की चौकी बिछाएं। उसके ऊपर पीला वस्त्र बिछाएं। चौकी पर पांच अलग-अलग दोनों पर अलग-अलग मिठाई रखें। दोनों में पांच लौंग, पांच इलायची और एक नींबू भी रखें। धूप-दीप, पुष्प, अक्षत अर्पित करने के उपरांत एक माला ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ स्कंद माता देव्यै नम: मंत्र का जाप करें। साथ ही एक माला जाप शनि पत्‍‌नी नाम स्तुति की करें। तत्पश्चात यह समस्त सामग्री किसी पीपल के पेड के नीचे चुपचाप रखकर आना चाहिए। बहुत जरूरी है कि अपने घर में प्रवेश से पहले हाथ-पैर अवश्य धो लें। ऐसा नियमित 43 दिन तक करें। पारिवारिक सारी समस्याओं का निवारण हो जाएगा। वैसे यह उपाय किसी भी महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी से प्रारंभ किया जा सकता है।
  
      पारिवारिक कष्ट निवारण या पति-पत्‍‌नी मन-मुटाव निवारण प्रयोग
      कई परिवार ऐसे देखे गए हैं कि उनके परिवार में किसी प्रकार की कमी नहीं है। भरा-पूरा परिवार है। धन-दौलत सबकुछ है लेकिन सुख-शांति नहीं है और कोई कारण समझ में नहीं आता। तो पांचवें नवरात्र में इस उपाय को शुरू करना चाहिए। वैसे तो यह उपाय शुक्ल पक्ष की किसी भी पंचमी को शुरू किया जा सकता है और उसे 43 दिन तक नियमित करना चाहिए। अपने पूजा स्थान में ईशान कोण में एक चौकी लगाकर पीला कपडा बिछाएं। उस पर हल्दी और केसर मिला कर स्वास्तिक बनाएं। स्वास्तिक के ऊपर कलश स्थापित करें। कलश में जल भर कर थोडा सा गंगाजल डालें। 7 मुट्ठी धनिया, 7 गांठ हल्दी और 7 बताशे डालें। पांच अशोक पेड के पत्तों को दबाकर कलश पर मिट्ठी की प्लेट रखें। उसमें 7 मुट्ठी गेहूं और 7 मुट्ठी मिट्टी मिला कर प्लेट में रखें। तत्पश्चात एक जटा वाला नारियल रखें उस पर 7 बार कलावा लपेट कर स्थान दें। नारियल पर केसर और हल्दी का तिलक करें। शुद्ध घी का दीपक जला कर गाय का घी, शक्कर, केला, मिश्री, दूध, मक्खन, हलवा भोग के रूप में अर्पित करें। और रुद्राक्ष की माला पर पांच माला ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ स्कंद माता देव्यै नम: और पांच माला ॐ सर्व मंगलमांगल्यै शिवै सर्वाथ साधिके। शरण्ये ˜यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तु ते। और मां भगवती को प्रणाम करके उठ जाएं। और माँ भगवती को लगाए भोग को निर्जन व गरीब परिवार में बांट दें। मां की आरती करें और कष्ट निवारण के लिए प्रार्थना करें। अगले दिन पुन: भोग व धूप-दीप अर्पित करें और पांच-पांच माला जाप करें। ऐसा नवमी तक करें। अंतिम दिन पांच कुंवारी कन्याओं को बुला कर भोजन कराएं। वस्त्र और दक्षिणा भेंट करें। नारियल फोड कर उस जल को पूरे घर में छिडक दें। गिरी को परिवार के सदस्यों में बांट दें। बाकी समस्त पूजन सामग्री कलश सहित जल में प्रवाह कर दें।
 
   [श्री सिद्ध शक्तिपीठ शनिधाम के पीठाधीश्वर श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर परमहंस दाती महाराज]http://www.shanidham.in/

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