Friday, October 8, 2010

मनोरथ सिद्धि करती है मां ब्रह्मचारिणी


नवरात्र के दूसरे दिन भगवती मां ब्रह्मचारिणी की पूजा, अर्चना का विधान है। साधक एवं योगी इस दिन अपने मन को भगवती मां के श्री चरणों मे एकाग्रचित करके स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित करते हैं और मां की कृपा प्राप्त करते हैं। ब्रह्म शब्द का तात्पर्य (तपस्या)। ब्रह्मचारिणी का तात्पर्य तप का आचरण करने वाली ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप ज्योतिर्मय एवं महान है। मां के दाहिने हाथ में जपमाला एवं बाएं हाथ में कमंडल सुशोभित रहता है। अपने पूर्व जन्म में वे हिमालय (पर्वतराज) के घर कन्या रूप में प्रकट हुई थीं। तब इन्होंने देवर्षि नारद जी के उपदेशानुसार कठिन तपस्या करके भगवान शंकर को अपने पति के रूप में प्राप्त किया था। मां ब्रह्मचारिणी की उपासना से मनोरथ सिद्धि, विजय एवं नीरोगता की प्राप्ति होती है तथा मां के निर्मल स्वरूप के दर्शन प्राप्त होते हैं। प्रेम युक्त की गई भक्ति से साधक का सर्व प्रकार से दु:ख-दारिद्र का विनाश एवं सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

नवरात्र का दूसरा दिन भगवती ब्रह्मचारिणी की आराधना का दिन है। श्रद्धालु भक्त व साधक अनेक प्रकार से भगवती की अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए व्रत-अनुष्ठान व साधना करते हैं। कुंडलिनी जागरण के साधक इस दिन स्वाधिष्ठान चक्र को जाग्रत करने की साधना करते हैं। वे गुरु कृपा से प्राप्त ज्ञान विधि का प्रयोग कर कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत करते हुए इसे जाग्रत कर शास्त्रोक्त फल प्राप्त कर अपने जीवन को सफल बनाना चाहते हैं। जगदम्बा भगवती के उपासक श्रद्धा भाव से उनके ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा कर उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को कृतार्थ करते हैं।

साधना विधान-
मां ब्रह्मचारिणी की प्रतिमा या तस्वीर को लकडी के पट्टे पर लाल कपडा बिछाकर स्थापित करें और उस पर हल्दी से रंगे हुए पीले चावल की ढेरी लगाकर उसके ऊपर हकीक पत्थर की 108 मनकों की माला रखें। परिवार या व्यक्ति विशेष के आरोग्य के लिए एवं अन्य मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु मनोकामना गुटिका रखकर हाथ में लाल पुष्प लेकर मां ब्रह्मचारिणी का ध्यान करें।

मनोकामना गुटिका पर पुष्पांजलि अर्पित कर उसका पंचोपचार विधि से पूजन करें। तदुपरांत दूध से निर्मित नैवेद्य मां ब्रह्मचारिणी को अर्पित करें। देशी घी से दीप प्रज्जवलित रहे। हकीक की माला से 108 बार मंत्र का जाप करें -

ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ओम् ब्रह्मचारिण्यै नम:

मंत्र पूर्ण होने पर मां से अपने अभीष्ट के लिए पूर्ण भक्ति भाव से प्रार्थना करें। तदुपरांत मां की आरती करें तथा कीर्तन करें।

इस दिन पूजन करके भगवती जगदम्बा को चीनी का भोग लगावे और ब्राह्मण को दे दें। यों करने से मनुष्य दीर्घायु होता है।

[श्री सिद्ध शक्तिपीठ शनिधाम के पीठाधीश्वर श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर परमहंस दाती महाराज]
http://www.shanidham.in/

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