Tuesday, February 18, 2014

शब्द शिल्पी अमरकांत पंचतत्व में विलीन


इलाहाबाद। प्रयाग की धरा से एक और शब्द शिल्पी सदा के लिए विदा हो गया। चिर निद्रा में लीन ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता अमरकांत का मंगलवार को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। नई कहानी आंदोलन के अंतिम स्तंभ अमरकांत को अंतिम विदा देने के लिए प्रयाग का पूरा साहित्य और संस्कृति जगत उमड़ पड़ा। सब की जुबान पर 'हत्यारे', 'बहादुर', 'दोपहर का भोजन', 'डिप्टी कलेक्टरी', 'इन्हीं हथियारों से' जैसी कालजयी रचनाओं की ही चर्चा रही। जिसने भी अमरकांत से मिलने का अवसर पाया था अपनी स्मृतियों को टटोलता नजर आया।
सोमवार सुबह लगभग दस बजे ज्ञानपीठ विजेता साहित्यकार अमरकांत का देहांत उनके आवास पर हो गया था। अमरकांत की शवयात्रा मंगलवार दोपहर अशोक नगर स्थित आवास से शंकरघाट तेलियरगंज के लिए निकली। उम्र के 89वें पड़ाव पर अपनी जीवनयात्रा समाप्त करने वाले नामचीन साहित्यकार को श्रद्धांजलि देने के लिए शवदाह गृह पर बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे। अंतिम संस्कार के मौके पर परिजनों के अतिरिक्त साहित्यकार शेखर जोशी, दूधनाथ सिंह, उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के निदेशक गौरव कृष्ण बंसल, हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रधानमंत्री विभूति सिंह, ज्ञानपीठ के प्रतिनिधि दिनेश ग्रोवर आदि मौजूद थे। परिवारीजन और बुद्धिजीवियों की मौजूदगी में अमरकांत के बड़े बेटे अरुण वर्धन ने अंतिम क्रिया कर्म किया। दोपहर लगभग दो बजे अंतिम संस्कार कर दिया गया। तीन बजे परिवारीजन ने शंकरघाट पर उनकी अस्थियों का विसर्जन कर दिया।
मंगलवार 18 फरवरी, 2014
[साभार: दैनिक जागरण]

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