Tuesday, February 18, 2014

अमर हो गए अमरकांत


इलाहाबाद। ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त करने वाले वयोवृद्ध साहित्यकार अमरकांत के निधन की खबर सुनकर हिंदी साहित्य जगत अवाक रह गया। उनके निधन की खबर पर उनके आवास पर साहित्य और संस्कृति कर्मियों का मजमा लग गया। कथाकार दूधनाथ सिंह, प्रणय कृष्ण, यश मालवीय, श्लेष गौतम, उर्मिला जैन, प्रो. अली अहमद फातमी, सूर्यनारायण, अनीता गोपेश इत्यादि उनके निवास पर श्रद्धांजलि देने पहुंचे। इसके साथ ही देर शाम तक शहर के कई साहित्यकारों, संस्कृति कर्मियों और बुद्धिजीवियों का उनके अंतिम दर्शन को पहुंचना जारी रहा। अमरकांत के पुत्र अरविंद बिंदु ने बताया कि मंगलवार को रसूलाबाद श्मशान घाट पर 11 बजे अंतिम संस्कार किया जाएगा।
'इंटरव्यू' ने बनाया अमरकांत
बलिया जिले के भगमलपुर नगरा में एक जुलाई 1925 को अधिवक्ता सीताराम वर्मा व मां अनंती देवी के घर जन्मे श्रीराम वर्मा साहित्य जगत में कदम रखते ही अमरकांत हो गए। सात भाई व चार बहनों में सबसे बड़े अमरकांत ने 1942 में हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की। सतीश चंद्र इंटर कालेज बलिया में इंटर की पढ़ाई के दौरान ही पहली मई 1946 को गिरिजा देवी से उनका विवाह हो गया। 1948 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद गृहस्थी चलाने की जिम्मेदारी निभाने के लिए आगरा में 'सैनिक' समाचार पत्र में काम करना शुरू किया। वहां मन नहीं रमा तो कुछ समय बाद इलाहाबाद वापस आ गए। यहां दर्जनों समाचार पत्र व पत्रिकाओं में संपादन किया। स्वास्थ्य खराब होने पर स्वतंत्र पत्रकारिता शुरू की। साथ ही उपन्यास, कहानियों का लेखन भी प्रकाशित होने लगा। साहित्य क्षेत्र में उन्होंने अपनी पहचान अमरकांत के रूप में बनाई। पहली कहानी 'इंटरव्यू' इसी नए नाम से लिखी। कहानी नाम पत्रिका की अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में पुरस्कृत 'डिप्टी कलेक्टरी' कहानी ने उन्हें स्थापित कर दिया। साहित्य जगत के कई नामचीन पुरस्कारों और सम्मानों का सिलसिले में 'इन्हीं हथियारों से' रचना के लिए 13 मार्च 2012 को इन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
प्रमुख पुरस्कार : डिप्टी कलेक्टरी कहानी पुरस्कृत हुई, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा साहित्यक पुरस्कार, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का यशपाल पुरस्कार, मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ का कीर्ति सम्मान, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा महात्मा गांधी सम्मान, मध्य प्रदेश का मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, वेदव्यास सम्मान, ज्ञानपीठ पुरस्कार।
प्रमुख कहानी संग्रह: जिंदगी और जोक, देश के लोग, मौत का नगर, मित्र मिलन।
कहानियां: कुहासा, तूफान, कला प्रेमी, एक धनी व्यक्ति का बयान, दु:ख-सुख का साथ, जांच और बच्चे, अमरकांत की सम्पूर्ण कहानियां खंड एक एवं दो, प्रतिनिधि कहानियां, औरत का क्रोध, पांच और बच्चे, अमरकांत की प्रेम कहानियां।
प्रमुख उपन्यास: सूखा पत्ता, सुखजीवी, आकाश पंक्षी, काले-उजले दिन, बीच की दीवार, कंटीली राह के फूल, ग्रामसेविका, सुन्नर पांडे की पतोहू, इन्हीं हथियारों से (स्वतंत्रता आंदोलन की पृष्ठभूमि पर आधारित), लहरें, विदा की रात, अमरकांत संचयन, अमरकांत एक मूल्यांकन।
चर्चित संस्मरण: कुछ यादें कुछ बातें, दोस्ती।
बाल साहित्य: वानर सेना, नेऊर भाई, खूंटों में दाल है, मंगरी, सच्चा दोस्त, बाबू का फैसला।
साहित्य: सुग्गी चाची का गांव, एक स्त्री का सफर, झगरूलाल का फैसला।
शब्दों में बयां की सामाजिक व्यथा
अमरकांत हिंदी के उन विरले, निर्विवाद रचनाकारों में शुमार थे, जिन्हें जब कोई सम्मान मिलता तो साहित्यजगत से जुड़े लोगों को आश्चर्य नहीं होता। वह कहते 'इससे अमरकांत नहीं बल्कि सम्मान देने वाली संस्था की साख बढ़ी है'। उन्हें हिंदी की नई कहानी के विकास का अग्रदूत माना गया। देश की आजादी के बाद 1950 के बाद हिंदी कहानी की श्रृंखला में कई प्रसिद्ध कथाकार आए उनमें अमरकांत का नाम सर्वोपरि है। वह गांव के न होकर शहरी और कस्बाई निम्न व मध्यम वर्ग के सर्वोत्तम कथाकार बने।
अमरकांत की पहली कहानी 'इंटरव्यू' से ही 50 व 60 के दशक में पैदा हुए बेरोजगार नौजवानों का सिलसिला शुरू होता है। 'डिप्टी कलेक्टरी' इस क्रम की सर्वोत्तम कहानी है। नौजवानों के बीच बहुत सारे आर्थिक एवं सामाजिक कारणों से विकसित हुई लंपट प्रवृत्ति का चित्रण उन्होंने अपनी कहानियों में किया। 'हत्यारे' जैसी कहानी दूसरी नहीं लिखी गई। समाजवादी होते हुए भी अमरकांत गांधीवाद से प्रभावित रहे। अमरकांत ने भारतीय किसान जीवन का चित्रण कहीं नहीं किया। जिंदगी और जोंक, डिप्टी कलेक्टरी, देश के लोग, मौत का नगर से आजादी के बाद सामाजिक परिदृश्य को जीवंतता से प्रस्तुत कर आम जनमानस की व्यथा को शब्दों में पिरोया। उस दौर में शुरू किया जब आधुनिकतावाद हिंदी के कई रचनाकारों पर अपनी बौद्धिक ऐंठ के साथ तारी हो रहा था। हिंदी कहानी, जिसे जीवन की ठेठ गद्य की विधा के तौर पर रूपाकार ग्रहण किये हुए अभी ज्यादा समय नहीं हुआ था। वह भी बदले हुए तेवर देखने के लिए व्यग्र थी। अमरकांत ने इसी दौर में आंदोलनात्मक रूप से कलम चलाई। कवि शैलेंद्र मधुर कहते हैं आजादी के बाद एक तरफ मध्यवर्ग का विस्तार हो रहा था, दूसरी तरफ मध्यवर्गीय संस्कारों की नहीं चल पाने की लाचारियां थीं। अमरकांत की विशिष्टता रही है यह है कि एक लेखक के रूप में अपना जीवन शुरू करते वक्त वे इन मुहावरों के चक्कर में नहीं पड़े। जो राह उन्होंने पकड़ी, वह उन्हें उस ओर ले गई जहां 'जिंदगी और जोक' का 'रजुआ' जैसा चरित्र उन्हें मिला, जहां 'डिप्टी कलक्टरी' के सकलदीप बाबू उन्हें मिले।
सोमवार 17 फरवरी, 2014
[साभार: दैनिक जागरण]

No comments: