Thursday, May 13, 2010

पितृ और कालसर्प दोष से मुक्ति दिलाती है शनैश्चरी अमावस्या



शनि जयंती व शनैचरी अमावस्या: 12 जून, 2010

शनिवार को पड़ने वाली अमावस्या को शनैश्चरी अमावस्या कहा जाता है। इस दिन मनुष्य विशेष अनुष्ठानों से पितृदोष और कालसर्प दोष से मुक्ति पा सकता है। इसके अलावा शनि का पूजन और तैलाभिषेक कर शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या और महादशा जनित संकट और आपदाओं से भी मुक्ति पाई जा सकती है, इसलिए शनैश्चरी अमावस्या के दिन पितरों का श्राद्ध जरूर करना चाहिए। यदि पितरों का प्रकोप न हो तो भी इस दिन किया गया श्राद्ध आने वाले समय में मनुष्य को हर क्षेत्र में सफलता प्रदान करता है, क्योंकि शनिदेव की अनुकंपा से पितरों का उद्धार बड़ी सहजता से हो जाता है।

धन-वैभव, मान-समान और ज्ञान आदि की प्राप्ति देवों और ऋषियों की अनुकंपा से होती है जबकि आरोग्य लाभ, पुष्टि और वंश वृद्धि के लिए पितरों का अनुग्रह जरूरी है। देवों और ऋषियों से संबंधित जप-तप और यज्ञ से मनुष्य को वही चीजें हासिल हो सकती हैं जिन्हें प्रदान करना उनके अधिकार में है, किंतु जिस व्यक्ति पर पितृकोप होता है वह देवों या ऋषियों को प्रसन्न करने से दूर नहीं होता। उसके लिए पितृकोप शांत करने वाले अनुष्ठान जरूरी होते हैं। ऐसे में शनि अमावस्या पर की गई पूजा और अनुष्ठान से पितर खुश होते हैं और लोगों को पितृकोप से निजात मिलती है। पितरों को प्रसन्न करने के लिए मनुष्य को सदा तत्पर रहना चाहिए क्योंकि पितरों के आशीर्वाद से ही सांसारिक विकास और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। पितृदोष या कालसर्पदोष ग्रस्त, असाध्य रोगों से पीडि़त, संतानहीन मनुष्य को शनि अमावस्या पर पूजा अर्चना करनी चाहिए। इस दिन मनुष्य को सरसों का तेल, उड़द, काला तिल, देसी चना, कुलथी, गुड़ शनियंत्र और शनि संबंधी समस्त पूजन सामग्री अपने ऊपर वार कर शनिदेव के चरणों में चढ़ाकर शनिदेव का तैलाभिषेक करना चाहिए।

शनिदेव को परमपिता परमात्मा के जगदाधार स्वरूप कच्छप का ग्रहावतार और कूर्मावतार भी कहा गया है। वह महर्षि कश्यप के पुत्र सूर्यदेव की संतान हैं। उनकी माता का नाम छाया है। इनके भाई मनु सावर्णि, यमराज, अश्वनी कुमार और बहन का नाम यमुना और भद्रा है। उनके गुरु शिवजी हैं और उनके मित्र हैं काल भैरव, हनुमान जी, बुध और राहु। ग्रहों के मुख्य नियंत्रक हैं शनि। उन्हें ग्रहों के न्यायाधीश मंडल का प्रधान न्यायाधीश कहा जाता है। शनिदेव के निर्णय के अनुसार ही सभी ग्रह मनुष्य को शुभ और अशुभ फल प्रदान करते हैं। न्यायाधीश होने के नाते शनिदेव किसी को भी अपनी झोली से कुछ नहीं देते। वह तो शुभ-अशुभ कर्मो के आधार पर मनुष्य को समय-समय पर वैसा ही फल देते हैं जैसे उन्होंने कर्म किया होता है।


क्रूर नहीं कल्याणकारी हैं शनि

लोग शनिदेव को क्रूर, क्रोधी, कष्टदायक और अमंगलकारी देवता समझते हैं शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या और महादशा और अंतरदशा होने पर लोग शनिदेव की शरण में आते हैं जबकि हकीकत यह है कि शनि मंगलकारी हैं। वह दुखदायक नहीं, सुखदायक हैं। शनि अशांति नहीं देते, शांति देते हैं। शनि भाग्यविधाता हैं, कर्म के दाता हैं, शनि मोक्ष के दाता हैं। शनि एक न्यायप्रिय ग्रह हैं। शनिदेव अपने भक्तों को भय से मुक्ति दिलाते हैं।

[इस बार शनि जयंती व शनैश्चरी अमावस्या का अद्भुत संयोग होने से इसका विशेष महत्व है।]

[लेख शनिचरणानुरागी दाती मदन महाराज राजस्थानी से बातचीत पर आधारित है]

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प्रस्तुति: यशपाल सिंह